Chatrapati Shivaji Maharaj Bhashan- आज हम यहाँ पर एक ऐसे महान व्यक्तित्व के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास को एक नई दिशा देने में अपना योगदान दिया। हमारे देश के एक महान योद्धा और राजनेता, छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर हम आज बात करेंगे।
(Chatrapati Shivaji Maharaj Bhashan) छत्रपति शिवाजी महाराज पर भाषण
हम शेर है, शेरों की तरह हँसते है, क्योंकि हमारे दिलों में छत्रपति शिवाजी बसते है. दुश्मनों के सम्मुख जिनके शीश नहीं झुकते है, वहीं अपना इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखते है।
स्टेज /मंच पर पहुँचते ही……… आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त गुरुजन और मेरे प्यारे साथियों.. आज मैं आप सभी के समक्ष छत्रपति वीर शिवाजी के बारे में कुछ शब्द व्यक्त करना चाहता हूं।
छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे, जिन्होंने 1674 में, पश्चिम भारत मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
शिवाजी का जन्म 1627 को शिवनेरी के पहाड़ी किले में हुआ था । यह किला पूना के उत्तर में था । ये शाहजी भोसले और माता जीजाबाई के पुत्र थे। उन्हें विश्वास था कि उनका पुत्र हिंदूधर्म और सभ्यता-संस्कृति का महान संरक्षक होगा। इसीलिए उन्होंने जहां उनमें दयालुता, सौम्यता, प्रेम और परस्पर सहयोग जैसे सौम्य भाव भरे थे, वहीं उन्हें ऐसा वीर, साहसी, न्यायप्रिय और कुशल योद्धा भी बनाया था, जिसके नाम से ही शत्रु कांप जाता था ।
शिवाजी के पिता बीजापुर के राजा की नौकरी में थे । वे अधिकतर घर से दूर रहते थे, इसलिए शिवाजी को केवल अपनी मां की संगति मिली । उनको नियमित शिक्षा नहीं मिल सकी। उनकी मां ने उन्हें एक साधारण बालक के समान पाला । वे रामायण और महाभारत की कहानियां सुनने के शौकीन थे। इन कहानियों का उनके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनका देश के प्रति अगाध प्रेम और उनका शक्तिशाली चरित्र इन्हीं संस्कारों का परिणाम था ।
शिवाजी एक वीर पुरुष थे और छापामार युद्ध की कला में भी प्रवीण थे। मुगल इन्हें ‘पहाड़ी चूहा ‘ कहते थे । औरंगजेब जब इन्हें हराने में असफल रहा तो उन्हें धोखे से उसने कैद कर लिया। वहां शिवाजी एक मिठाई के टोकरे में बैठकर जेल से फरार हो गए। इन्होंने कई वर्षों तक औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया । 1647 को रामगढ़ के किले में इनका राजतिलक हुआ। शिवाजी का चरित्र बहुत अच्छा था । ये गऊ, ब्राह्मण, स्त्री तथा सभी धार्मिक ग्रंथों का बहुत आदर करते थे – इनके जीवन की अनेक घटनाएं इस सत्य की पुष्टि करती हैं । 1680 को भारत के महान योद्धा और धर्मरक्षक छत्रपति शिवाजी महाराज जी का देहांत हो गया ।
धन्यवाद
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